शनिवार, 8 मार्च 2014

मोहब्बत

होती है दुनिया में, यकीनन मोहब्बत होती है
बस कम्बख्त इसकी उम्र बड़ी छोटी होती है

मचलती है, सुलगती है, दहकती है ज़ोर से
अपने पूरे शबाब पर महकती है पुरज़ोर से
अचानक ठहरती है, बिछड़ती है, बिखरती है
और बुझ कर ये फिर से आवारा भटकती है
... कम्बख्त इसकी उम्र बड़ी छोटी होती है

किसी अंजाने सफ़र में, कोई पहचाने रास्ते पर
बारिश कि फुहारों में, किसी सनसेट पॉइंट पर
ख़ामोशी से कभी छम छम कर के लिपटती है
ज़रा क़रीबी बढ़ते ही ये फिर दूर होने लगती है
... कम्बख्त इसकी उम्र बड़ी छोटी होती है

ढूंढती एक नज़र, झुक कर उठती एक नज़र
भरी भीड़ में रुक रुक कर जुड़ती एक नज़र
आँखों ही आँखों में हर कहानी शुरू होती है
उन्हीं आँखों के सैलाब में फिर ये डूबती है
... कम्बख्त इसकी उम्र बड़ी छोटी होती है

पल भर की, चंद लम्हों की या एक मौसम की
दिल की, रूह की, दर्द की या सिर्फ जिस्म की
कोई नीयत हो भूख सौ फ़ीसदी सच्ची होती है
कितनी भी छोटी हो मोहब्बत अच्छी होती है

होती है दुनिया में, यकीनन मोहब्बत होती है
बस कम्बख्त इसकी उम्र बड़ी छोटी होती है

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

मुलाक़ात

ये सोचा न था तुमसे फ़िर कभी मुलाक़ात होगी
बुझी हुई राख में दबी थोडी सी कहीं आग होगी

भीगा है मन, भीगी हैं यादें, भीगी भीगी है तन्हाई
कोहरा है बहुत अभी, आगे कहीं शायद रौशनी होगी

बहुत पुरानी है बात फ़िर कैसे हवाओं में वही खुशबू है
खबर नहीं ये कहानी कब शुरू हुई, कहाँ ख़त्म होगी

यूँ तो देखे हैं मौसम बहुत लेकिन नहीं जानते थे
एक रोज़ बिना बादल ऐसी ज़ोर की बरसात होगी

कभी ख्वाब हो, कभी राज़, कभी धूप तो कभी छाओं तुम
कौन है इस नकाब के पीछे, तुम्हारी कोई तो पहचान होगी

करूँ ऐतबार तुम्हारी आँखों का या ज़ख्मों का अपने
पता नहीं किस के अरमानों की इस बार कुर्बानी होगी

एक तरफ़ पूरी दुनिया और इस तरफ़ एक छोटा सा दिल
न जाने कौन मुस्कुराएगा और किस की रुसवाई होगी

दो अल्फाज़ नहीं जुड़ रहे थे कि एक ग़ज़ल मिल गई "राजीव"
ये मेरी तो हो नहीं सकती, ये ज़रूर तुम्हारी मोहब्बत होग

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

सभी सीखते रहे

कि हमारी ग़ल्तियों से सभी सीखते रहे और सज़ा हमें देते रहे
लहूलुहान देख कर भी वो हमारी ग़ल्तियों का इंतज़ार करते रहे

कोई भी नयी राह चुनोगे तो कुछ ग़ल्तियाँ हो ही जायेंगी
बेहद समझदार हैं वो, इसी लिये चार कदम पीछे चलते रहे

जानते हैं "इश्क़ आग़ का दरिया है, तैर के उस पार जाना है"
और वो किनारे पर खड़े हमारे जलने का इंतज़ार करते रहे

क्या सुनायें "राजीव" अपने तज़ुर्बों की ये कहानी अब तुम्हें
जितना भी हम सीखे, उससे कहीं ज़्यादा तो हम भुलाते रहे

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

तुम्हारी यादें

एक शाम जो मुझे नसीब हुईं तुम्हारी यादें
इस दिल को अज़ीज़ हो गयीं तुम्हारी यादें

पल भर भी तुम दूर नहीं फ़िर क्यूँ
तुम से ज़्यादा करीब हो गयीं तुम्हारी यादें

हर लम्हा तुम्हें याद करतें हैं फ़िर भी
कभी कम क्यूँ न हुईं तुम्हारी यादें

सावन की बूंदों में जब आंसू भी मिले
मेरी आँखों में भर आयीं तुम्हारी यादें

अजनबी चेहरों से भरी हर महफिल में
मुझे दोस्त बन कर मिल गयीं तुम्हारी यादें

तन्हा रातों में नींद मिल गई जो कभी
ख्वाबों की सहर पर मिल गयीं तुम्हारी यादें

वो हमराह हैं मेरी ये कुबूल है मगर
कभी हमसफर हो नहीं सकतीं तुम्हारी यादें

मोहब्बत की इस राह गुज़र में "राजीव"
तुम्हारी जगह ले नहीं सकतीं तुम्हारी यादें