गुरुवार, 26 अगस्त 2010

दोस्त

हर मोड़ पर यूँ तो हज़ारों लोग मिल जाते हैं
फ़िर क्यूँ बस थोड़े से ही लोग याद रह जाते हैं

ज़रूर रिश्ता होगा पिछले किसी जनम का
इतनी भीड़ में भी वो साथ नज़र आते हैं

वक्त के फासले हों या दूरियां ज़मीन की
एक रोज़ फ़िर से वो करीब ही मिल जाते हैं

खू़न से गाड़ा है जाम का रिश्ता "राजीव"
लडखडाते हौसलों को वो सहारा दे जाते हैं

रविवार, 15 अगस्त 2010

१५ अगस्त २०१०

आज़ादी की कैसी त्रेसठवीं सालगिरह मन रही है
कोलाहल के पीछे बैठी भारत माँ सुबक रही है
शहीद हुए थे क्या बापू और भगत इसी दिन के लिए
टुकड़े भी तो कर दिए थे मज़हब की सहूलियत के लिए
लिए खून पसीने से लथ पथ बच्चे की लाश गोद में
काश्मीर, मनीपुर और कभी बंगाल को ताक रही है

सोने की चिड़िया को पहले मुग़लों फिर अंग्रेजों ने लूटा
बड़ा वक़्त लगा और खून बहा फिर उनसे पीछा छूटा
तब ये किसने सोचा था अपने ही बच्चे खुदगर्ज़ हो जायेंगे
नदी, पहाड़, भाषा के लिए एक दुसरे के दुश्मन हो जायेंगे
देश की बागडोर सम्हालने वाले हो गए हैं अब मौसेरे भाई
सैकड़ों करोड़ रुपये की हर रोज़ खुले आम चोरी हो रही है

प्रजातंत्र के असली मायने गुंडागर्दी और लूट खसूट हो गए हैं
देश चलाने के लिए विचारों के नाम पर सैकड़ों दल हो गए हैं
जिसको जहाँ मौका मिलता है अपना उल्लू सीधा करता है
साल दो साल में ही साधारण कार्यकर्ता बड़ा सेठ हो जाता है
चन्दे के नाम पर है सुरक्षा,नेताओं का अब बस यही है पेशा
व्यापारियों से सांठ गाँठ में स्विस बैंक की तिजोरी भर रही है

कुछ आलिशान शहर बना दिए हैं उन्नति के नाम पर
एक बदहवास सी ज़िन्दगी दी है सफलता के नाम पर
ट्रेन और बस की त्रास छोडो, पैदल चलने को जगह नहीं है
दो वक़्त की रोटी क्या कहें, अब तो पीने को पानी नहीं है
एक तरफ है बड़ी इमारतों, कारों और दौलत की चका चौंध
एक तरफ गरीबी की रेखा चुप चाप खडी तमाशा देख रही है

कायदे क़ानून लागू होंगे, रिश्वत के हाथों नहीं बिकाऊ होंगे
इस पावन धरती पर रोटी, कपडा, मकान के हक बराबर होंगे
कौन फिर एक बार इस देश को सौदागरों से आज़ादी दिलाएगा
त्रेसठ साल पहले देखा सपना एक दिन वो सपूत पूरा करवाएगा
इस कोलाहल से छुपकर बैठी, रोती सुबकती भारत माता
आसमान पर टक टकी बांधे शायद यही सवाल पूछ रही है