मंगलवार, 27 अगस्त 2013

तुम्हारी यादें

एक शाम जो मुझे नसीब हुईं तुम्हारी यादें
इस दिल को अज़ीज़ हो गयीं तुम्हारी यादें

पल भर भी तुम दूर नहीं फ़िर क्यूँ
तुम से ज़्यादा करीब हो गयीं तुम्हारी यादें

हर लम्हा तुम्हें याद करतें हैं फ़िर भी
कभी कम क्यूँ न हुईं तुम्हारी यादें

सावन की बूंदों में जब आंसू भी मिले
मेरी आँखों में भर आयीं तुम्हारी यादें

अजनबी चेहरों से भरी हर महफिल में
मुझे दोस्त बन कर मिल गयीं तुम्हारी यादें

तन्हा रातों में नींद मिल गई जो कभी
ख्वाबों की सहर पर मिल गयीं तुम्हारी यादें

वो हमराह हैं मेरी ये कुबूल है मगर
कभी हमसफर हो नहीं सकतीं तुम्हारी यादें

मोहब्बत की इस राह गुज़र में "राजीव"
तुम्हारी जगह ले नहीं सकतीं तुम्हारी यादें

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