शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

सभी सीखते रहे

कि हमारी ग़ल्तियों से सभी सीखते रहे और सज़ा हमें देते रहे
लहूलुहान देख कर भी वो हमारी ग़ल्तियों का इंतज़ार करते रहे

कोई भी नयी राह चुनोगे तो कुछ ग़ल्तियाँ हो ही जायेंगी
बेहद समझदार हैं वो, इसी लिये चार कदम पीछे चलते रहे

जानते हैं "इश्क़ आग़ का दरिया है, तैर के उस पार जाना है"
और वो किनारे पर खड़े हमारे जलने का इंतज़ार करते रहे

क्या सुनायें "राजीव" अपने तज़ुर्बों की ये कहानी अब तुम्हें
जितना भी हम सीखे, उससे कहीं ज़्यादा तो हम भुलाते रहे

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