शनिवार, 2 मार्च 2013

बंद करो

बहुत हुआ अब आग लगाना बंद करो
अपने ही घरों में सेंध लगाना अब बंद करो

अफवाहों को लगाम देने के साथ साथ
इधर की उधर करना अब बंद करो

ताश के पत्ते हैं और है केरम लूडो भी
छल कपट का खेल खेलना अब बंद करो


अपने दो टके के अहम् की जीत के लिए
अपने बच्चों का घर उजाड़ना अब बंद करो

प्यार मोहब्बत के अनमोल एहसासों को
खोटी अशर्फियों में तोलना अब बंद करो

खून में मिली नेतागिरी से देश संवारो
अपने ही खून से नेतागिरी अब बंद करो

घर के ही लोगों को छोटा बता कर
अपने कद का परचम लहराना अब बंद करो

नज़र आती हैं साफ़ चालाकियां तुम्हारी
बेकार में मुखोटे लगाना अब बंद करो

तुम को आदत होगी विष पीकर जीने की
अपनों के जीवन में ज़हर घोलना अब बंद करो

अगर मुमकिन नहीं ये तुमसे "राजीव"
बेलगाम घर से निकलना अब बंद करो

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