कहने को सभी को एक दूसरे ख्याल है
फिर भी ज़ेहन में बस रहा कोई मलाल है
आखिर खून है तो रंग कैसे न मिलेगा
जहाँ रिस रहा पीठ में लगा हर घाव है
गधे को अपना बाप बनाने की होड़ में
अपना उल्लू सीधा करने की जुगाड़ में
है कुछ इस तरह का आलम अब यहाँ
दिल में लगा खुदगर्ज़ी का बाज़ार है
फिर भी ज़ेहन में बस रहा कोई मलाल है
आखिर खून है तो रंग कैसे न मिलेगा
जहाँ रिस रहा पीठ में लगा हर घाव है
गधे को अपना बाप बनाने की होड़ में
अपना उल्लू सीधा करने की जुगाड़ में
है कुछ इस तरह का आलम अब यहाँ
दिल में लगा खुदगर्ज़ी का बाज़ार है
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