शनिवार, 12 नवंबर 2011

ये दोस्ती

क्या कहूं दोस्ती के मायने क्या हो गए हैं
फेस बुक पर हैं और ज़िन्दगी से लापता हो गए हैं

ज़माने के बदलते तौर तरीकों के मद्दे नज़र
कुछ अजनबी और कुछ सौदागर हो गए हैं

अच्छे होते हैं बेकारी और मुफलिसी के दिन
बड़े बड़े फ़कीर दोस्ती के बारे में कह गए हैं

ज़रा सी मुलाक़ात तोल मोल में बदल जाती है
किससे कितने फायदे और नुक्सान हो गए हैं

सीधी सीधी बातें ओढती हैं सियासती लिबास
अलफ़ाज़ तो अलफ़ाज़, इरादे भी बदल गए हैं

दोस्त और दोस्ती के जाने पहचाने रास्ते थे
बीवी बच्चों के साथ अब नए दोस्त जुड़ गए हैं

गुज़रे सालों का हिसाब अब यादों से नहीं होता
हैसियत और काबलियत नए मापदंड हो गए हैं

दोस्तों की कामयाबी के जश्न को वक़्त कहाँ
खुद की तारीफ़ में इतने मसरूफ हो गए हैं

भागती दौड़ती ज़िन्दगी में मिलते हैं कभी
शुक्र है खुदा का इतने तो करीब रह गए हैं

न खुशियों का रिश्ता है अब कोई, न ग़म का
पैमानों पर बस कीमत के लेबल लग गए हैं

स्कूल कॉलेज की महफिलों में ज़रा सांस लेते ही
कार और कारोबार के हिसाब लगने लग गए हैं

क्या लाये हो और क्या ले जाओगे यहाँ से
गीता के ज्ञान के मायने क्या से क्या हो गए हैं

ईर्ष्या द्वेष छल कपट फायदा नुक्सान पढ़ा नहीं था
दुनियादारी की शिक्षा में कितने विद्वान हो गए हैं

दौलत का नशा सबसे गाडा और नशीला है "राजीव"
दोस्ती की कहानी के किरदार इस रंग में डूब गए हैं

4 टिप्‍पणियां:

  1. क्या लाये हो और क्या ले जाओगे यहाँ से
    गीता के ज्ञान के मायने क्या से क्या हो गए हैं
    wah! badiya Rajeev!

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  2. jisne dosti ka matlab jana aur fir dosti ki,
    jisne dost ko jana aur fir matlab dhoondne nikla,
    dono ki disha ke antar ko samjho,
    ek doosre ko jana aur naam dosti di....

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  3. संदीप ... तुमने मेरी बज़्म में आकर इसका मान बढ़ा दिया.

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  4. बेनामी ... खूब कहा ... कम से कम अपना नाम तो बताइये.

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