रविवार, 2 अक्तूबर 2011

शराब

बुरा हो शराब का मेरी ज़िन्दगी यूँ बदल दी
ऐसी छूटी मूंह से, मेरे यार ने नज़र बदल दी

उसकी आगोश में कितना अज़ीज़ लगता था
वजह बेवजह खूब गुफ्तगू किया करता था
रात की ख़ामोशी को ठहाकों से चीरता था
घन्टे दो घन्टे के लिए सच बोला करता था
मेरा दोस्त इसी बहाने फ़ोन कर लिया करता था

जबसे शराब को तलाक़ दे आया है
जाने क्या मर्ज़ लगाया है
साला अजीब होश में आया है
पता नहीं किस बात से घबराया है
मुद्दतें हुईं उसने फ़ोन नहीं लगाया है

फिर एक रोज़ कमबख्त मुझसे छूट गयी
मानों जैसे एक और क़यामत हो गयी
अचानक सारी तमीज़ तहज़ीब लुट गयी
दुनियादारी की जैसे हर रस्म छूट गयी
तन्हाई दौड़ कर मुझसे लिपट गयी

कल तक जो साथ था वो दूर हो गया
दोस्तों से भरा काफिला यूँ गुम हो गया
महफिलों का भी जनाज़ा निकल गया
कहने सुनने को कोई बाकि नहीं रह गया
बगैर शराब ज़िन्दगी का मोल नहीं रह गया

बुरा हो शराब का मेरी ज़िन्दगी यूँ बदल दी
ऐसी छूटी मूंह से, मेरी कायनात ही बदल दी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें