गुरुवार, 11 अगस्त 2011

मेरी बज़्म

मेरी बज़्म में जो चाहने वाले आये हैं
वही तो मेरे कलाम का मोल बढ़ाये हैं
शुक्रगुज़ार हूँ सभी का मैं तहे दिल से
वो जो हो गए अपने और जो अपने हैं

कुछ कमाल के चाहने वाले आये हैं
भरी महफ़िल में चेहरा छुपाये हैं
खुदा ने इतनी अच्छी शक्ल बक्शी है
न जाने किस बात से मूंह छुपाये हैं

कुछ अपना नाम तक बताते नहीं हैं
तारीफ़ मगर ज़रूर करते रहते हैं
किस बात का खौफ़ है न जाने इनको
इस महफ़िल से तारुफ़ नहीं करते हैं

और फिर कुछ मेरे ख़ास दोस्त हैं
फ़ोन या ई-मेल पर दाद देते हैं
जिनको होना चाहिए मेरी बज़्म में
वही छुप छुप कर वाह वाह करते हैं

शुक्रिया सभी का, सभी चाहने वाले हैं
अपने अपने मिजाज़ से लुत्फ़ उठाये हैं
शुक्र है किसी न किसी बहाने 'राजीव'
तेरी बज़्म में तेरा कलाम पढने आये हैं

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