रविवार, 28 फ़रवरी 2010

प्रहलाद

न दिन होगा न रात, न मनुष्य न जानवर
न घर में न बाहर, न धरती होगी न आसमान
इन सभी स्थितियों में कोई उसे मार नहीं पायेगा
राजा हिरन्यकश्यप को मिला ब्रह्माजी का वरदान

वरदान मिलते ही उमड़ आया बस एक अरमान
अब वही कहलाना चाहता था भगवान्
मगर विधि का विधान कुछ और था
आँगन में जन्मी विष्णु भक्त संतान

पुत्र की भक्ति पर खूब ज़ोर अजमाया
तरह तरह से उसे बहुत सताया
अंत में अग्नि वरदान प्राप्त बहिन को बुलाया
और प्रहलाद को उसकी गोद में बैठकर जलाया

प्रहलाद का बाल भी बांका न हुआ मगर
फागुन की पूर्णिमा को होलिका का दहन हुआ
हिरन्यकश्यप की अन्तिम घड़ी भी आ पहुँची
सांझ ढले घर की सीडियों पर उसका वध हुआ

आधे मनुष्य और आधे शेर के रूप में
भक्त को बचाने भगवन बने नरसिम्हन
निस्स्वार्थ भक्ति का इससे उत्तम फल क्या होगा
विपत्ति में सदैव साथ होंगे साक्षात् नारायण

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