बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

जगजीत सिंह

ख़ुदा का शुक्र है मुझसे ये गुस्ताख़ी नहीं हुई
गुलज़ार साहब से पहले तुम्हरी नज़्म नहीं हुई
यकीनन उसकी मर्ज़ी थी जो आज बात बन गयी
उनकी नज़्म होते ही ख़यालों को सहर मिल गयी

ये क्या बात हुई कि तुम ख़ुदा को प्यारे हो गए हो
मेरी दुनिया से हमेशा के लिया विदा हो गए हो
वो ख़ुदा ही बताये तुम उसको कब प्यारे नहीं थे
वो जग जीत ही गए जिस जग को मोहने आये थे

कई महीने हो गए सुने की तुम यहाँ से चले गए
कुछ को अनाथ और कितनों को मायूस कर गए
अगर ये सच भी है तो इस बात का ग़म कैसे करूँ
ख़ुदा की मर्ज़ी के आगे फ़रियाद किस हक़ से करूँ

अपने जीते जी तुम्हारे होने की ख़ुशी कहीं ज़्यादा है
इसी ख्याल के सहारे तुम्हारे जाने का ग़म ज़रा कम है
शुक्रगुज़ार हूँ ख़ुदा का जो तुम्हें ज़मीन पर उतारा
कुछ वक़्त जो तुमने हम इंसानों के साथ गुज़ारा

तुम्हारे होने से ही ख़ुदा का यकीन पक्का हुआ
इस भरी दुनिया में कहने को कोई अपना हुआ
जब से होश संभाला है तुम्हारी आवाज़ ही सहारा है
तुम्हारी ग़ज़लें ही ज़िन्दगी का मक्ता और मिस्रा है

आवाज़ नहीं मरहम है, मेरी कायनात की सरगम है
ज़ख्म भर दे गुनगुना कर, किस दवा में ऐसा दम है
किसी नेक करम की दुआ होगी ज़माने भर के वास्ते
कोई हाल हो या हालात, तय हो जाते हैं सभी रास्ते

कभी दोस्त, कभी महबूबा, कभी गुरु और कभी ख़ुदा
कभी ख़ुशी, कभी ग़म, कभी महफ़िल और कभी तन्हा
हर रिश्ते, हर एहसास को मेरे ही ख़यालों से चुना जैसे
आवाज़, कलाम, मौसिकी के धागों से फिर बुना जैसे

अन्फोर्गेटएबल्स से हुई इब्तेदा में ये तय हो गया था
एक फ़रिश्ता इंसान बन कर ज़मीन पर उतर आया था
बात जो निकली है यकीनन बड़ी दूर तलक जाएगी
तेरी आवाज़ के सहारे ज़िन्दगी अच्छी गुज़र जाएगी

न विनायक को पहचानता, न ही शिव को ढूँढ पाता
न नारायण मिलते, न राम और कृष्ण को देख पाता
न माँ की ज्योती मिलती, न मिटता मन का अँधेरा
न मिलता गुरु का ज्ञान, न पूरी होती शाम, न सवेरा

मत पूछो मेरे क्या थे, पूछो क्या हो और रहोगे
आख़िरी दम तक मेरी साँसों में धड़कते रहोगे
तुम्हरी ग़ज़लों, नज़्मों, भजनों का गज़ब सहारा है
मुझे याद नहीं कोई भी दिन इनके बग़ैर गुज़ारा है

इस जहाँ में तो चाह कर भी मिल न पाया तुमसे
अपनी कोई नज़्म भी कभी कह न पाया तुमसे
फ़राज़ कहते हैं जो भी बिछड़े हैं, मिलते नहीं शायद
फिर भी तू इंतज़ार कर, हम कभी मिल सकें शायद

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