गुरुवार, 26 अगस्त 2010

दोस्त

हर मोड़ पर यूँ तो हज़ारों लोग मिल जाते हैं
फ़िर क्यूँ बस थोड़े से ही लोग याद रह जाते हैं

ज़रूर रिश्ता होगा पिछले किसी जनम का
इतनी भीड़ में भी वो साथ नज़र आते हैं

वक्त के फासले हों या दूरियां ज़मीन की
एक रोज़ फ़िर से वो करीब ही मिल जाते हैं

खू़न से गाड़ा है जाम का रिश्ता "राजीव"
लडखडाते हौसलों को वो सहारा दे जाते हैं

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