ज़रूर कुछ ख़ास है आसमान पर कोई नज़र आया है
झिलिमिल ऑंखें लिए चाँद आज मुस्कुराया है
पिछले कुछ दिनों में बिछ्ढ गए कई अपने पराये
देखो तो सभी को एक चेहरा नज़र आया है
भीगी एक आंख लगता है जैसे सुबक रही हो
बेवजह यूँ जुदा होने का मुकद्दर किसने बनाया है
कालिख असमान की मिट जायेगी, धुल जाएगा अँधेरा भी
कैसे भरेगा मगर वो घाव जो ताज की रूह पर लगाया है
किस से शिकायत करूँ इंसान क्यूँ दरिंदा हुआ "राजीव"
उसको भी तो आख़िर मेरे खुदा ने ही बनाया है
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